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\s यरूशलेम में विजय प्रवेश
\p \v 28 ये बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उनके आगे-आगे चला।

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\v 39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” \v 40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”
यरूशलेम के लिये विलाप
\v 39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” \v 40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”

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\v 41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। \v 42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में शान्ति की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (व्य. 32:29, यशा. 6:9-10)
\s यरूशलेम के लिये विलाप
\p \v 41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। \v 42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में शान्ति की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (व्य. 32:29, यशा. 6:9-10)

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\v 43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। \v 44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्‍टि की गई न पहचाना।”
मन्दिर की सफाई
\v 43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। \v 44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्‍टि की गई न पहचाना।”

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\v 45 तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। \v 46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (यशा. 56:7, यिर्म. 7:11)
\s मन्दिर की सफाई
\p \v 45 तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। \v 46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (यशा. 56:7, यिर्म. 7:11)

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\v 7 अतः उन्होंने उत्तर दिया, “हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से था।” \v 8 यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि मैं ये काम किस अधिकार से करता हूँ।”
दुष्ट किसानों का दृष्टान्त
\v 7 अतः उन्होंने उत्तर दिया, “हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से था।” \v 8 यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि मैं ये काम किस अधिकार से करता हूँ।”

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\v 9 तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। (मर. 12:1-12, मत्ती 21:33-46) \v 10 नियुक्त समय पर उसने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीटकर खाली हाथ लौटा दिया।
\s दुष्ट किसानों का दृष्टान्त
\p \v 9 तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। (मर. 12:1-12, मत्ती 21:33-46) \v 10 नियुक्त समय पर उसने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीटकर खाली हाथ लौटा दिया।

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\v 17 उसने उनकी ओर देखकर कहा, “फिर यह क्या लिखा है:
‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था,
वही कोने का सिरा हो गया।’ (भज. 118:22-23) \v 18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा*, और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (दानि. 2:34-35)
शास्त्रियों और प्रधान याजकों की चाल
वही कोने का सिरा हो गया।’ (भज. 118:22-23) \v 18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा*, और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (दानि. 2:34-35)

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