From ee3ec9ceaeb251a6b7854d5fc4ef9fa71a8e5133 Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Vachaa Date: Tue, 17 Dec 2024 18:37:47 +0530 Subject: [PATCH] Tue Dec 17 2024 18:37:47 GMT+0530 (India Standard Time) --- 19/28.txt | 1 + 19/39.txt | 3 +-- 19/41.txt | 3 ++- 19/43.txt | 3 +-- 19/45.txt | 3 ++- 20/07.txt | 3 +-- 20/09.txt | 3 ++- 20/17.txt | 3 +-- manifest.json | 7 ------- 9 files changed, 11 insertions(+), 18 deletions(-) diff --git a/19/28.txt b/19/28.txt index ae0628d..5d890d2 100644 --- a/19/28.txt +++ b/19/28.txt @@ -1 +1,2 @@ +\s यरूशलेम में विजय प्रवेश \p \v 28 ये बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उनके आगे-आगे चला। \ No newline at end of file diff --git a/19/39.txt b/19/39.txt index 9e8073f..7b43455 100644 --- a/19/39.txt +++ b/19/39.txt @@ -1,2 +1 @@ -\v 39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” \v 40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।” -यरूशलेम के लिये विलाप \ No newline at end of file +\v 39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” \v 40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।” \ No newline at end of file diff --git a/19/41.txt b/19/41.txt index 9029bcd..a34af87 100644 --- a/19/41.txt +++ b/19/41.txt @@ -1 +1,2 @@ -\v 41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। \v 42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में शान्ति की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (व्य. 32:29, यशा. 6:9-10) \ No newline at end of file +\s यरूशलेम के लिये विलाप +\p \v 41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। \v 42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में शान्ति की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (व्य. 32:29, यशा. 6:9-10) \ No newline at end of file diff --git a/19/43.txt b/19/43.txt index 33f0119..b2ca09c 100644 --- a/19/43.txt +++ b/19/43.txt @@ -1,2 +1 @@ -\v 43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। \v 44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्‍टि की गई न पहचाना।” -मन्दिर की सफाई \ No newline at end of file +\v 43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। \v 44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्‍टि की गई न पहचाना।” \ No newline at end of file diff --git a/19/45.txt b/19/45.txt index 445aff2..3095507 100644 --- a/19/45.txt +++ b/19/45.txt @@ -1 +1,2 @@ -\v 45 तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। \v 46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,’ परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (यशा. 56:7, यिर्म. 7:11) \ No newline at end of file +\s मन्दिर की सफाई +\p \v 45 तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। \v 46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,’ परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (यशा. 56:7, यिर्म. 7:11) \ No newline at end of file diff --git a/20/07.txt b/20/07.txt index 7902cd6..6792e63 100644 --- a/20/07.txt +++ b/20/07.txt @@ -1,2 +1 @@ -\v 7 अतः उन्होंने उत्तर दिया, “हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से था।” \v 8 यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि मैं ये काम किस अधिकार से करता हूँ।” -दुष्ट किसानों का दृष्टान्त \ No newline at end of file +\v 7 अतः उन्होंने उत्तर दिया, “हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से था।” \v 8 यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि मैं ये काम किस अधिकार से करता हूँ।” \ No newline at end of file diff --git a/20/09.txt b/20/09.txt index 7fa7fbb..70faa68 100644 --- a/20/09.txt +++ b/20/09.txt @@ -1 +1,2 @@ -\v 9 तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। (मर. 12:1-12, मत्ती 21:33-46) \v 10 नियुक्त समय पर उसने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीटकर खाली हाथ लौटा दिया। \ No newline at end of file +\s दुष्ट किसानों का दृष्टान्त +\p \v 9 तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। (मर. 12:1-12, मत्ती 21:33-46) \v 10 नियुक्त समय पर उसने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीटकर खाली हाथ लौटा दिया। \ No newline at end of file diff --git a/20/17.txt b/20/17.txt index 1caaf5c..2a424a2 100644 --- a/20/17.txt +++ b/20/17.txt @@ -1,4 +1,3 @@ \v 17 उसने उनकी ओर देखकर कहा, “फिर यह क्या लिखा है: ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, -वही कोने का सिरा हो गया।’ (भज. 118:22-23) \v 18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा*, और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (दानि. 2:34-35) -शास्त्रियों और प्रधान याजकों की चाल \ No newline at end of file +वही कोने का सिरा हो गया।’ (भज. 118:22-23) \v 18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा*, और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (दानि. 2:34-35) \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index 0619a45..b81aff2 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -354,21 +354,14 @@ "19-29", "19-32", "19-37", - "19-39", - "19-41", - "19-43", - "19-45", "19-47", "20-title", "20-01", "20-03", "20-05", - "20-07", - "20-09", "20-11", "20-13", "20-15", - "20-17", "20-19", "20-21", "20-23",