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\v 5 वे तो जान-बूझकर यह भूल जाते हैं, कि परमेश्‍वर के वचन के द्वारा आकाश प्राचीनकाल से विद्यमान है और पृथ्वी जल में से बनी और जल में स्थिर है (उत्प. 1:6-9) \v 6 इन्हीं के द्वारा उस युग का संसार जल प्रलय में डूब कर नाश हो गया। (उत्प. 7:11-21) \v 7 परन्तु वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी, उसी वचन के द्वारा* इसलिए सुरक्षित रखे गए हैं, कि आग से नष्ट किये जाएँ; और अधर्मी मनुष्यों के न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे जायेंगे।

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03/08.txt Normal file
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\v 8 परन्तु हे प्रियों, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के साथ एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं। (भज. 90:4) \v 9 प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता*, जैसी कितने लोग समझते हैं; पर वह हमारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन् यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले। (हब. 2:3-4)

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\v 10 10 परन्तु प्रभु का दिन* चोर की नाईं आ जाएगा। उस दिन आकाश बड़े शोर के साथ विलीन हो जाएगा, और तत्व अत्यन्त ताप से पिघल जाएँगे; और पृथ्वी और उसके कामों का न्याय होगा।

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