Sun Nov 17 2024 22:49:12 GMT+0530 (India Standard Time)
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और धर्मी लूत को, जो अधर्मियों के अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुःखी था, बचाया। (उत्प.19:12-13, 15) 8 (क्योंकि वह धर्मी उनके बीच में रहते हुए और उनके अधर्म के कामों को देख देखकर, और सुन सुनकर, हर दिन अपने सच्चे मन को पीड़ित करता था)। 9 तो प्रभु, धर्मियों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना जानता है।
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\v 7 और धर्मी लूत को, जो अधर्मियों के अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुःखी था, बचाया। (उत्प.19:12-13, 15) \v 8 (क्योंकि वह धर्मी उनके बीच में रहते हुए और उनके अधर्म के कामों को देख देखकर, और सुन सुनकर, हर दिन अपने सच्चे मन को पीड़ित करता था)। \v 9 तो प्रभु, धर्मियों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना जानता है।
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\v 10 विशेष करके उन्हें जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं। वे ढीठ और घमंडी हैं, और ऊँचे पदवालों का अपमान करने से भी नहीं डरते। \v 11 परन्तु स्वर्गदूत, जो शक्ति और सामर्थ्य में उनसे बड़े हैं, प्रभु के सामने उन्हें बुरा-भला कहकर दोष नहीं लगाते।
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