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\v 20 क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर अधीन करनेवाले की ओर से व्यर्थता के अधीन इस आशा से की गई। \v 21 कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पा कर, परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी। \v 22 क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।