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\v 8 आपस के प्रेम को छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है। \v 9 क्योंकि यह कि “व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, लालच न करना,” और इनको छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (निर्ग. 20:13-16, लैव्य. 19:18) \v 10 प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है।