hi_rom_text_reg/03/05.txt

1 line
563 B
Plaintext

\v 5 पर यदि हमारा अधर्म परमेश्‍वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें? क्या यह कि परमेश्‍वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। \v 6 कदापि नहीं! नहीं तो परमेश्‍वर कैसे जगत का न्याय करेगा?