Wed Nov 13 2024 13:47:20 GMT+0530 (India Standard Time)
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c49cf7691f
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\v 20 पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहाँ-जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनाऊँ; ऐसा न हो, कि दूसरे की नींव पर घर बनाऊँ। \v 21 परन्तु जैसा लिखा है, वैसा ही हो,
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“जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुँचा, वे ही देखेंगे
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और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।” (यशा. 52:15)
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\v 22 \v 23 22 इसलिए मैं तुम्हारे पास आने से बार-बार रुका रहा। 23 परन्तु अब इन देशों में मेरे कार्य के लिए जगह नहीं रही, और बहुत वर्षों से मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है।
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"15-13",
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"15-14",
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"15-15",
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"15-17"
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"15-17",
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"15-20"
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}
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