\v 31 “शमौन, हे शमौन, शैतान ने तुम लोगों को माँग लिया है कि गेंहूँ के समान फटके*। \v 32 परन्तु मैंने तेरे लिये विनती की, कि तेरा विश्वास न जाए और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।”