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\v 28 “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और वह पहले बैठकर खर्च न जोड़े, यह देखने के लिये कि उसे पूरा करने के लिये उसके पास काफ़ी है कि नहीं? \v 29 कहीं ऐसा न हो, कि जब नींव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसका उपहास करेंगे, \v 30 ‘यह मनुष्य बनाने तो लगा, पर तैयार न कर सका?
\v 28 “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और वह पहले बैठकर खर्च न जोड़े, यह देखने के लिये कि उसे पूरा करने के लिये उसके पास काफ़ी है या नहीं? \v 29 कहीं ऐसा न हो, कि जब नींव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसका उपहास करेंगे, \v 30 ‘यह मनुष्य बनाने तो लगा, पर तैयार न कर सका?

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\v 13 और उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उनसे कहा, ‘मेरे लौट आने तक लेन-देन करना।’ \v 14 “परन्तु उसके नगर के रहनेवाले उससे बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे। \v 15 “जब वह राजपद पा कर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या-क्या कमाया।
\v 13 और उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उनसे कहा, ‘मेरे लौट आने तक लेन-देन करना।’ \v 14 “परन्तु उसके नगर के रहनेवाले उससे बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे। \v 15 “जब वह राजपद पा कर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को, जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या-क्या कमाया।

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