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\v 24 यीशु ने उसे देखकर कहा, “धनवानों का परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! \v 25 परमेश्‍वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।”

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18/26.txt Normal file
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\v 26 और सुननेवालों ने कहा, “तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?” \v 27 उसने कहा, “जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्‍वर से हो सकता है।”

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18/28.txt Normal file
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\v 28 पतरस ने कहा, “देख, हम तो घर-बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” \v 29 उसने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं जिस ने परमेश्‍वर के राज्य के लिये घर, या पत्‍नी, या भाइयों, या माता-पिता, या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो। \v 30 और इस समय कई गुणा अधिक न पाए; और परलोक में अनन्त जीवन।”

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18/31.txt Normal file
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\v 31 फिर उसने बारहों को साथ लेकर उनसे कहा, “हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्र के लिये भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं* वे सब पूरी होंगी। \v 32 क्योंकि वह अन्यजातियों के हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसका उपहास करेंगे; और उसका अपमान करेंगे, और उस पर थूकेंगे। \v 33 और उसे कोड़े मारेंगे, और मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।”

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18/34.txt Normal file
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\v 34 और उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी और यह बात उनसे छिपी रही, और जो कहा गया था वह उनकी समझ में न आया।

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18/35.txt Normal file
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\v 35 जब वह यरीहो के निकट पहुँचा, तो एक अंधा सड़क के किनारे बैठा हुआ भीख माँग रहा था। \v 36 और वह भीड़ के चलने की आहट सुनकर पूछने लगा, “यह क्या हो रहा है?” \v 37 उन्होंने उसको बताया, “यीशु नासरी जा रहा है।”

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18/38.txt Normal file
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\v 38 तब उसने पुकार के कहा, “हे यीशु, दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” \v 39 जो आगे-आगे जा रहे थे, वे उसे डाँटने लगे कि चुप रहे परन्तु वह और भी चिल्लाने लगा, “हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!”

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18/40.txt Normal file
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\v 40 तब यीशु ने खड़े होकर आज्ञा दी कि उसे मेरे पास लाओ, और जब वह निकट आया, तो उसने उससे यह पूछा, \v 41 “तू क्या चाहता है, मैं तेरे लिये क्या करूँ?” उसने कहा, “हे प्रभु, यह कि मैं देखने लगूँ।”

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