Sat Nov 23 2024 08:45:36 GMT+0530 (India Standard Time)

This commit is contained in:
Vachaa 2024-11-23 08:45:37 +05:30
parent c5dfa88a43
commit f1a86d8a9d
10 changed files with 20 additions and 4 deletions

View File

@ -1,3 +1 @@
\v 29 और जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहके भेजा,
\v 30 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बन्धा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर लाओ।
31 और यदि कोई तुम से पूछे, कि क्यों खोलते हो, तो यह कह देना, कि प्रभु को इसकी ज़रूरत है।”
\v 29 और जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहके भेजा, \v 30 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बन्धा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर लाओ। \v 31 और यदि कोई तुम से पूछे, कि क्यों खोलते हो, तो यह कह देना, कि प्रभु को इसकी ज़रूरत है।”

1
19/32.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1 @@
\v 32 जो भेजे गए थे, उन्होंने जाकर जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया। \v 33 जब वे गदहे के बच्चे को खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उनसे पूछा, “इस बच्चे को क्यों खोलते हो?” \v 34 उन्होंने कहा, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है।” \v 35 वे उसको यीशु के पास ले आए और अपने कपड़े उस बच्चे पर डालकर यीशु को उस पर बैठा दिया। \v 36 जब वह जा रहा था, तो वे अपने कपड़े मार्ग में बिछाते जाते थे। (2 राजा. 9:13)

2
19/37.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1,2 @@
\v 37 और निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुँचा, तो चेलों की सारी मण्डली उन सब सामर्थ्य के कामों के कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित होकर बड़े शब्द से परमेश्‍वर की स्तुति करने लगी: (जक. 9:9) \v 38 “धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से आता है!
स्वर्ग में शान्ति और आकाश में महिमा हो!” (भज. 72:18-19, भज. 118:26)

1
19/39.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1 @@
\v 39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” \v 40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”

1
19/41.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1 @@
\v 41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। \v 42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में शान्ति की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (व्य. 32:29, यशा. 6:9-10)

1
19/43.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1 @@
\v 43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। \v 44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्‍टि की गई न पहचाना।”

1
19/45.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1 @@
\v 45 तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। \v 46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा, परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (यशा. 56:7, यिर्म. 7:11)

1
19/47.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1 @@
\v 47 और वह प्रतिदिन मन्दिर में उपदेश देता था : और प्रधान याजक और शास्त्री और लोगों के प्रमुख उसे मार डालने का अवसर ढूँढ़ते थे। \v 48 परन्तु कोई उपाय न निकाल सके; कि यह किस प्रकार करें, क्योंकि सब लोग बड़ी चाह से उसकी सुनते थे।

1
20/title.txt Normal file
View File

@ -0,0 +1 @@
Chapter 20

View File

@ -422,6 +422,15 @@
"19-22",
"19-24",
"19-26",
"19-28"
"19-28",
"19-29",
"19-32",
"19-37",
"19-39",
"19-41",
"19-43",
"19-45",
"19-47",
"20-title"
]
}