From df9e6866117c2d3e7a4efb60199a1db094d56c9d Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Vachaa Date: Mon, 2 Dec 2024 16:07:53 +0530 Subject: [PATCH] Mon Dec 02 2024 16:07:53 GMT+0530 (India Standard Time) --- 12/20.txt | 2 +- 12/33.txt | 2 +- 12/39.txt | 2 +- 12/47.txt | 2 +- manifest.json | 2 +- 5 files changed, 5 insertions(+), 5 deletions(-) diff --git a/12/20.txt b/12/20.txt index 63d9c0a..8b2971e 100644 --- a/12/20.txt +++ b/12/20.txt @@ -1 +1 @@ -\v 20 परन्तु परमेश्‍वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा; तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह किसका होगा?’ \v 21 ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्‍वर की दृष्टि में धनी नहीं।” \ No newline at end of file +\v 20 परन्तु परमेश्‍वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा; तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह किसका होगा?’ \v 21 ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्‍वर की दृष्टि में धनी नहीं।” किसी बात की चिन्ता ना करो \ No newline at end of file diff --git a/12/33.txt b/12/33.txt index ec48458..bc82dbe 100644 --- a/12/33.txt +++ b/12/33.txt @@ -1 +1 @@ -\v 33 अपनी संपत्ति बेचकर* दान कर दो; और अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते, अर्थात् स्वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं, जिसके निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नाश नहीं करता। \v 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहाँ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा। \ No newline at end of file +\v 33 अपनी संपत्ति बेचकर* दान कर दो; और अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते, अर्थात् स्वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं, जिसके निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नाश नहीं करता। \v 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहाँ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा। सदा तैयार रहो \ No newline at end of file diff --git a/12/39.txt b/12/39.txt index 7e1cdd0..d821fd5 100644 --- a/12/39.txt +++ b/12/39.txt @@ -1 +1 @@ -\v 39 परन्तु तुम यह जान रखो, कि यदि घर का स्वामी जानता, कि चोर किस घड़ी आएगा, तो जागता रहता, और अपने घर में सेंध लगने न देता। \v 40 तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।” \ No newline at end of file +\v 39 परन्तु तुम यह जान रखो, कि यदि घर का स्वामी जानता, कि चोर किस घड़ी आएगा, तो जागता रहता, और अपने घर में सेंध लगने न देता। \v 40 तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।” विश्वासयोग्य सेवक कौन? \ No newline at end of file diff --git a/12/47.txt b/12/47.txt index 9f68c20..132cc31 100644 --- a/12/47.txt +++ b/12/47.txt @@ -1 +1 @@ -\v 47 और वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था*, और तैयार न रहा और न उसकी इच्छा के अनुसार चला, बहुत मार खाएगा। \v 48 परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा, इसलिए जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा। \ No newline at end of file +\v 47 और वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था*, और तैयार न रहा और न उसकी इच्छा के अनुसार चला, बहुत मार खाएगा। \v 48 परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा, इसलिए जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा। शान्ति नहीं फूट \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index 40dc99e..c98ca48 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -293,6 +293,7 @@ "12-04", "12-06", "12-08", + "12-11", "12-13", "12-16", "12-20", @@ -307,7 +308,6 @@ "12-39", "12-41", "12-45", - "12-47", "12-49", "12-51", "12-54",