diff --git a/06/35.txt b/06/35.txt index eea0eba..f7bb881 100644 --- a/06/35.txt +++ b/06/35.txt @@ -1 +1 @@ -\v 35 वरन् अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो, और फिर पाने की आसन रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि परमेश्वर उन पर, जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। (लैव्य. 25:35-36, मत्ती 5:44-45) \v 36 जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो। \ No newline at end of file +\v 35 वरन् अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो, और फिर पाने की आसन रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि परमेश्वर उन पर, जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। (लैव्य. 25:35-36, मत्ती 5:44-45) \v 36 जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो। दोष मत लगाओ \ No newline at end of file diff --git a/06/41.txt b/06/41.txt index 2542e36..9187484 100644 --- a/06/41.txt +++ b/06/41.txt @@ -1 +1 @@ -\v 41 तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? \v 42 और जब तू अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई, ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ?’ हे कपटी*, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, भली भाँति देखकर निकाल सकेगा। \ No newline at end of file +\v 41 तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? \v 42 और जब तू अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई, ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ?’ हे कपटी*, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, भली भाँति देखकर निकाल सकेगा। पेड़ की फल से पहचान \ No newline at end of file diff --git a/06/45.txt b/06/45.txt index d203c44..57d8fbf 100644 --- a/06/45.txt +++ b/06/45.txt @@ -1 +1 @@ -\v 45 भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है। \ No newline at end of file +\v 45 भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है। घर बनानेवाले दो प्रकार के मनुष्य \ No newline at end of file diff --git a/07/09.txt b/07/09.txt index aef7885..7b7fef2 100644 --- a/07/09.txt +++ b/07/09.txt @@ -1 +1 @@ -\v 9 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उसने मुँह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।” \v 10 और भेजे हुए लोगों ने घर लौटकर, उस दास को चंगा पाया। \ No newline at end of file +\v 9 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उसने मुँह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।” \v 10 और भेजे हुए लोगों ने घर लौटकर, उस दास को चंगा पाया। मृतक को जीवन-दान \ No newline at end of file diff --git a/07/16.txt b/07/16.txt index b592067..4f7a73b 100644 --- a/07/16.txt +++ b/07/16.txt @@ -1 +1 @@ -\v 16 इससे सब पर भय छा गया*; और वे परमेश्‍वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्‍वर ने अपने लोगों पर कृपादृष्‍टि की है।” \v 17 और उसके विषय में यह बात सारे यहूदिया और आस-पास के सारे देश में फैल गई। \ No newline at end of file +\v 16 इससे सब पर भय छा गया*; और वे परमेश्‍वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्‍वर ने अपने लोगों पर कृपादृष्‍टि की है।” \v 17 और उसके विषय में यह बात सारे यहूदिया और आस-पास के सारे देश में फैल गई। यूहन्ना का प्रश्न \ No newline at end of file diff --git a/07/33.txt b/07/33.txt index cfcfb99..7253d09 100644 --- a/07/33.txt +++ b/07/33.txt @@ -1 +1 @@ -\v 33 क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, उसमें दुष्टात्मा है। \v 34 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया है; और तुम कहते हो, ‘देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र।’ \v 35 पर बुद्धि अपनी सब सन्तानों से ही सच्चा ठहराया गया है।” \ No newline at end of file +\v 33 क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, उसमें दुष्टात्मा है। \v 34 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया है; और तुम कहते हो, ‘देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र।’ \v 35 पर बुद्धि अपनी सब सन्तानों से ही सच्चा ठहराया गया है।” शमौन फरीसी के घर पापिन स्त्री को क्षमादान \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index a419127..9c1d061 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -158,6 +158,7 @@ "06-20", "06-22", "06-24", + "06-26", "06-27", "06-29", "06-31",