From c9109f08305432b85460065939f1231f1d6d4918 Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Vachaa Date: Fri, 22 Nov 2024 22:26:12 +0530 Subject: [PATCH] Fri Nov 22 2024 22:26:11 GMT+0530 (India Standard Time) --- 04/16.txt | 1 + 04/18.txt | 8 ++++++++ 04/20.txt | 1 + 04/23.txt | 1 + 04/25.txt | 1 + 04/28.txt | 1 + manifest.json | 7 ++++++- 7 files changed, 19 insertions(+), 1 deletion(-) create mode 100644 04/16.txt create mode 100644 04/18.txt create mode 100644 04/20.txt create mode 100644 04/23.txt create mode 100644 04/25.txt create mode 100644 04/28.txt diff --git a/04/16.txt b/04/16.txt new file mode 100644 index 0000000..7729394 --- /dev/null +++ b/04/16.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 16 और वह नासरत में आया; जहाँ उसका पालन-पोषण हुआ था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। \v 17 यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक* उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहाँ यह लिखा था : \ No newline at end of file diff --git a/04/18.txt b/04/18.txt new file mode 100644 index 0000000..1403e07 --- /dev/null +++ b/04/18.txt @@ -0,0 +1,8 @@ +\v 18 “प्रभु का आत्मा मुझ पर है, +इसलिए कि उसने कंगालों को सुसमाचार +सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, +और मुझे इसलिए भेजा है, कि बन्धुओं +को छुटकारे का +और अंधों को दृष्टि +पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और +कुचले हुओं को छुड़ाऊँ, (यशा. 58:6, यशा. 61:1,2) \v 19 और प्रभु के प्रसन्‍न रहने के वर्ष* का प्रचार करूँ।” \ No newline at end of file diff --git a/04/20.txt b/04/20.txt new file mode 100644 index 0000000..f6880df --- /dev/null +++ b/04/20.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 20 तब उसने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी, और बैठ गया: और आराधनालय के सब लोगों की आँखें उस पर लगी थी। \v 21 तब वह उनसे कहने लगा, “आज ही यह शास्त्र तुम्हारे सामने पूरा हुआ है।” \v 22 और सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुँह से निकलती थीं, उनसे अचम्भित हुए; और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?” (लूका 2:42, भज. 45:2) \ No newline at end of file diff --git a/04/23.txt b/04/23.txt new file mode 100644 index 0000000..80b2fe8 --- /dev/null +++ b/04/23.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 23 उसने उनसे कहा, “तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे, ‘कि हे वैद्य, अपने आप को अच्छा कर! जो कुछ हमने सुना है कि कफरनहूम में तूने किया है उसे यहाँ अपने देश में भी कर’।” \v 24 और उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कोई भविष्यद्वक्ता अपने देश में मान-सम्मान नहीं पाता। \ No newline at end of file diff --git a/04/25.txt b/04/25.txt new file mode 100644 index 0000000..c90d7c9 --- /dev/null +++ b/04/25.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 25 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे देश में बड़ा आकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएँ थीं। (1 राजा. 17:1, 1 राजा. 18:1) \v 26 पर एलिय्याह को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सैदा के सारफत में एक विधवा के पास। (1 राजा. 17:9) \v 27 और एलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर सीरिया वासी नामान को छोड़ उनमें से काई शुद्ध नहीं किया गया।” (2 राजा. 5:1-14) \ No newline at end of file diff --git a/04/28.txt b/04/28.txt new file mode 100644 index 0000000..51c0011 --- /dev/null +++ b/04/28.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 28 ये बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए। \v 29 और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उनका नगर बसा हुआ था, उसकी चोटी पर ले चले, कि उसे वहाँ से नीचे गिरा दें। \v 30 पर वह उनके बीच में से निकलकर चला गया। \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index 38104ab..26656eb 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -117,6 +117,11 @@ "04-08", "04-09", "04-12", - "04-14" + "04-14", + "04-16", + "04-18", + "04-20", + "04-23", + "04-25" ] } \ No newline at end of file