diff --git a/15/31.txt b/15/31.txt new file mode 100644 index 0000000..988d152 --- /dev/null +++ b/15/31.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 31 उसने उससे कहा, ‘पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है*। \v 32 परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है।’ ” \ No newline at end of file diff --git a/16/01.txt b/16/01.txt new file mode 100644 index 0000000..b7d8ec3 --- /dev/null +++ b/16/01.txt @@ -0,0 +1 @@ +\c 16 \v 1 फिर उसने चेलों से भी कहा, “किसी धनवान का एक भण्डारी था, और लोगों ने उसके सामने भण्डारी पर यह दोष लगाया कि यह तेरी सब सम्पत्ति उड़ाए देता है। \v 2 अतः धनवान ने उसे बुलाकर कहा, ‘यह क्या है जो मैं तेरे विषय में सुन रहा हूँ? अपने भण्डारीपन का लेखा दे; क्योंकि तू आगे को भण्डारी नहीं रह सकता।’ \ No newline at end of file diff --git a/16/03.txt b/16/03.txt new file mode 100644 index 0000000..1b1c178 --- /dev/null +++ b/16/03.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 3 तब भण्डारी सोचने लगा, ‘अब मैं क्या करूँ? क्योंकि मेरा स्वामी अब भण्डारी का काम मुझसे छीन रहा है: मिट्टी तो मुझसे खोदी नहीं जाती; और भीख माँगने से मुझे लज्जा आती है। \v 4 मैं समझ गया, कि क्या करूँगा: ताकि जब मैं भण्डारी के काम से छुड़ाया जाऊँ तो लोग मुझे अपने घरों में ले लें।’ \ No newline at end of file diff --git a/16/05.txt b/16/05.txt new file mode 100644 index 0000000..aeca8c8 --- /dev/null +++ b/16/05.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 5 और उसने अपने स्वामी के देनदारों में से एक-एक को बुलाकर पहले से पूछा, कि तुझ पर मेरे स्वामी का कितना कर्ज़ है? \v 6 उसने कहा, ‘सौ मन जैतून का तेल,’ तब उसने उससे कहा, कि अपनी खाता-बही ले और बैठकर तुरन्त पचास लिख दे। \v 7 फिर दूसरे से पूछा, ‘तुझ पर कितना कर्ज है?’ उसने कहा, ‘सौ मन गेहूँ,’ तब उसने उससे कहा, ‘अपनी खाता-बही लेकर अस्सी लिख दे।’ \ No newline at end of file diff --git a/16/08.txt b/16/08.txt new file mode 100644 index 0000000..db3c3a1 --- /dev/null +++ b/16/08.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 8 “स्वामी ने उस अधर्मी भण्डारी को सराहा, कि उसने चतुराई से काम किया है; क्योंकि इस संसार के लोग अपने समय के लोगों के साथ रीति-व्यवहारों में ज्योति के लोगों* से अधिक चतुर हैं। \v 9 और मैं तुम से कहता हूँ, कि अधर्म के धन से अपने लिये मित्र बना लो; ताकि जब वह जाता रहे, तो वे तुम्हें अनन्त निवासों में ले लें। \ No newline at end of file diff --git a/16/10.txt b/16/10.txt new file mode 100644 index 0000000..bab8d2a --- /dev/null +++ b/16/10.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 10 जो थोड़े से थोड़े में विश्वासयोग्य है, वह बहुत में भी विश्वासयोग्य है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है। \v 11 इसलिए जब तुम सांसारिक धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो सच्चा धन तुम्हें कौन सौंपेगा? \v 12 और यदि तुम पराये धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें कौन देगा? \ No newline at end of file diff --git a/16/title.txt b/16/title.txt new file mode 100644 index 0000000..48743f0 --- /dev/null +++ b/16/title.txt @@ -0,0 +1 @@ +Chapter 16 \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index 235c9a0..84b1ce5 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -356,6 +356,13 @@ "15-20", "15-22", "15-25", - "15-28" + "15-28", + "15-31", + "16-title", + "16-01", + "16-03", + "16-05", + "16-08", + "16-10" ] } \ No newline at end of file