From 2c5027b7f6a6e060f3cc59e280fcbbae4dc518fd Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Vachaa Date: Fri, 22 Nov 2024 22:34:12 +0530 Subject: [PATCH] Fri Nov 22 2024 22:34:12 GMT+0530 (India Standard Time) --- 05/33.txt | 1 + 05/36.txt | 1 + 05/37.txt | 1 + 06/01.txt | 1 + 06/03.txt | 1 + 06/06.txt | 1 + 06/title.txt | 1 + manifest.json | 9 ++++++++- 8 files changed, 15 insertions(+), 1 deletion(-) create mode 100644 05/33.txt create mode 100644 05/36.txt create mode 100644 05/37.txt create mode 100644 06/01.txt create mode 100644 06/03.txt create mode 100644 06/06.txt create mode 100644 06/title.txt diff --git a/05/33.txt b/05/33.txt new file mode 100644 index 0000000..db61f21 --- /dev/null +++ b/05/33.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 33 और उन्होंने उससे कहा, “यूहन्ना के चेले तो बराबर उपवास रखते और प्रार्थना किया करते हैं, और वैसे ही फरीसियों के भी, परन्तु तेरे चेले तो खाते-पीते हैं।” \v 34 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम बारातियों से जब तक दूल्हा उनके साथ रहे, उपवास करवा सकते हो? \v 35 परन्तु वे दिन आएँगे, जिनमें दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।” \ No newline at end of file diff --git a/05/36.txt b/05/36.txt new file mode 100644 index 0000000..97cc98c --- /dev/null +++ b/05/36.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 36 उसने एक और दृष्टान्त* भी उनसे कहा: “कोई मनुष्य नये वस्त्र में से फाड़कर पुराने वस्त्र में पैबन्द नहीं लगाता, नहीं तो नया फट जाएगा और वह पैबन्द पुराने में मेल भी नहीं खाएगा। \ No newline at end of file diff --git a/05/37.txt b/05/37.txt new file mode 100644 index 0000000..210706f --- /dev/null +++ b/05/37.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 37 और कोई नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नया दाखरस मशकों को फाड़कर बह जाएगा, और मशकें भी नाश हो जाएँगी। \v 38 परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरना चाहिये। \v 39 कोई मनुष्य पुराना दाखरस पीकर नया नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, कि पुराना ही अच्छा है।” \ No newline at end of file diff --git a/06/01.txt b/06/01.txt new file mode 100644 index 0000000..6a9ce07 --- /dev/null +++ b/06/01.txt @@ -0,0 +1 @@ +\c 6 \v 1 फिर सब्त के दिन वह खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेले अन्न तोड़-तोड़कर, और हाथों से मल-मल कर* खाते जाते थे। (व्य. 23:25) \v 2 तब फरीसियों में से कुछ कहने लगे, “तुम वह काम क्यों करते हो जो सब्त के दिन करना उचित नहीं?” \ No newline at end of file diff --git a/06/03.txt b/06/03.txt new file mode 100644 index 0000000..20a62a9 --- /dev/null +++ b/06/03.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 3 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम ने यह नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने जब वह और उसके साथी भूखे थे तो क्या किया? \v 4 वह कैसे परमेश्‍वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ लेकर खाई, जिन्हें खाना याजकों को छोड़ और किसी को उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दी?” (लैव्य. 24:5-9, 1 शमू. 21:6) \v 5 और उसने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है।” \ No newline at end of file diff --git a/06/06.txt b/06/06.txt new file mode 100644 index 0000000..2cc39f0 --- /dev/null +++ b/06/06.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 6 और ऐसा हुआ कि किसी और सब्त के दिन को वह आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दाहिना हाथ सूखा था। \v 7 शास्त्री और फरीसी उस पर दोष लगाने का अवसर पाने के लिये उसकी ताक में थे, कि देखें कि वह सब्त के दिन चंगा करता है कि नहीं। \v 8 परन्तु वह उनके विचार जानता था; इसलिए उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “उठ, बीच में खड़ा हो।” वह उठ खड़ा हुआ। \ No newline at end of file diff --git a/06/title.txt b/06/title.txt new file mode 100644 index 0000000..4bc8853 --- /dev/null +++ b/06/title.txt @@ -0,0 +1 @@ +Chapter 6 \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index 66f7b45..81a9aba 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -143,6 +143,13 @@ "05-22", "05-25", "05-27", - "05-29" + "05-29", + "05-33", + "05-36", + "05-37", + "06-title", + "06-01", + "06-03", + "06-06" ] } \ No newline at end of file