diff --git a/17/05.txt b/17/05.txt index e990810..8a4b4f3 100644 --- a/17/05.txt +++ b/17/05.txt @@ -1,2 +1,3 @@ -\v 5 तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।” \v 6 प्रभु ने कहा, “यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता। +\s तुम्हारा विश्वास कितना बड़ा है? +\p \v 5 तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।” \v 6 प्रभु ने कहा, “यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता। उत्तम सेवक \ No newline at end of file diff --git a/17/09.txt b/17/09.txt index 6e42b6a..0f46d1e 100644 --- a/17/09.txt +++ b/17/09.txt @@ -1,2 +1 @@ -\v 9 क्या वह उस दास का एहसान मानेगा, कि उसने वे ही काम किए जिसकी आज्ञा दी गई थी? \v 10 इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुके हो जिसकी आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है’।” -एक कोढ़ी का आभार \ No newline at end of file +\v 9 क्या वह उस दास का एहसान मानेगा, कि उसने वे ही काम किए जिसकी आज्ञा दी गई थी? \v 10 इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुके हो जिसकी आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है’।” \ No newline at end of file diff --git a/17/11.txt b/17/11.txt index 0aa5990..704faf4 100644 --- a/17/11.txt +++ b/17/11.txt @@ -1 +1,2 @@ -\v 11 और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील प्रदेश की सीमा से होकर जा रहा था। \v 12 और किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। (लैव्य. 13:46) \v 13 और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊँचे शब्द से कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!” \ No newline at end of file +\s एक कोढ़ी का आभार +\p \v 11 और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील प्रदेश की सीमा से होकर जा रहा था। \v 12 और किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। (लैव्य. 13:46) \v 13 और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊँचे शब्द से कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!” \ No newline at end of file diff --git a/17/17.txt b/17/17.txt index 31eea60..1cff58c 100644 --- a/17/17.txt +++ b/17/17.txt @@ -1,2 +1 @@ -\v 17 इस पर यीशु ने कहा, “क्या दसों शुद्ध न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं? \v 18 क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्‍वर की बड़ाई करता?” \v 19 तब उसने उससे कहा, “उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” -परमेश्‍वर के राज्य का प्रगट होना \ No newline at end of file +\v 17 इस पर यीशु ने कहा, “क्या दसों शुद्ध न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं? \v 18 क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्‍वर की बड़ाई करता?” \v 19 तब उसने उससे कहा, “उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” \ No newline at end of file diff --git a/17/20.txt b/17/20.txt index 22b221d..722b0d7 100644 --- a/17/20.txt +++ b/17/20.txt @@ -1 +1,2 @@ -\v 20 जब फरीसियों ने उससे पूछा, कि परमेश्‍वर का राज्य कब आएगा? तो उसने उनको उत्तर दिया, “परमेश्‍वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता। \v 21 और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहाँ है, या वहाँ है। क्योंकि, परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” \ No newline at end of file +\s परमेश्‍वर के राज्य का प्रगट होना +\p \v 20 जब फरीसियों ने उससे पूछा, कि परमेश्‍वर का राज्य कब आएगा? तो उसने उनको उत्तर दिया, “परमेश्‍वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता। \v 21 और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहाँ है, या वहाँ है। क्योंकि, परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” \ No newline at end of file diff --git a/18/13.txt b/18/13.txt index 5b9d8b7..eaa2fa5 100644 --- a/18/13.txt +++ b/18/13.txt @@ -1,2 +1 @@ -\v 13 “परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आँख उठाना भी न चाहा, वरन् अपनी छाती पीट-पीटकर* कहा, ‘हे परमेश्‍वर मुझ पापी पर दया कर!’ (भज. 51:1) \v 14 मैं तुम से कहता हूँ, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहरा और अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।” -परमेश्‍वर का राज्य बच्चों के समान \ No newline at end of file +\v 13 “परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आँख उठाना भी न चाहा, वरन् अपनी छाती पीट-पीटकर* कहा, ‘हे परमेश्‍वर मुझ पापी पर दया कर!’ (भज. 51:1) \v 14 मैं तुम से कहता हूँ, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहरा और अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।” \ No newline at end of file diff --git a/18/15.txt b/18/15.txt index 1d0091b..3c2795f 100644 --- a/18/15.txt +++ b/18/15.txt @@ -1,2 +1,2 @@ -\v 15 फिर लोग अपने बच्चों को भी उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; और चेलों ने देखकर उन्हें डाँटा। \v 16 यीशु ने बच्चों को पास बुलाकर कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो: क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य ऐसों ही का है। \v 17 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्‍वर के राज्य को बालक के समान ग्रहण न करेगा वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।” -एक धनी का यीशु से प्रश्न \ No newline at end of file +\s परमेश्‍वर का राज्य बच्चों के समान +\p \v 15 फिर लोग अपने बच्चों को भी उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; और चेलों ने देखकर उन्हें डाँटा। \v 16 यीशु ने बच्चों को पास बुलाकर कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो: क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य ऐसों ही का है। \v 17 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्‍वर के राज्य को बालक के समान ग्रहण न करेगा वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।” \ No newline at end of file diff --git a/18/18.txt b/18/18.txt index 3ba8c34..b25c170 100644 --- a/18/18.txt +++ b/18/18.txt @@ -1 +1,2 @@ -\v 18 किसी सरदार ने उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” \v 19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्‍वर। \v 20 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’।” \v 21 उसने कहा, “मैं तो इन सब को लड़कपन ही से मानता आया हूँ।” \ No newline at end of file +\s एक धनी का यीशु से प्रश्न +\p \v 18 किसी सरदार ने उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” \v 19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्‍वर। \v 20 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’।” \v 21 उसने कहा, “मैं तो इन सब को लड़कपन ही से मानता आया हूँ।” \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index 6b92427..4e37c89 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -321,13 +321,8 @@ "16-29", "17-title", "17-01", - "17-05", "17-07", - "17-09", - "17-11", "17-14", - "17-17", - "17-20", "17-22", "17-25", "17-28", @@ -340,9 +335,6 @@ "18-06", "18-09", "18-11", - "18-13", - "18-15", - "18-18", "18-22", "18-24", "18-26",