hi_luk_text_ulb/07/11.txt

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\v 11 थोड़े दिन के बाद वह नाईन* नाम के एक नगर को गया, और उसके चेले, और बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी। \v 12 जब वह नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो, लोग एक मुर्दे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपनी माँ का एकलौता पुत्र था (और वह विधवा थी), और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे। \v 13 उसे देखकर प्रभु को तरस आया, और उसने कहा, “मत रो।” \v 14 तब उसने पास आकर दफ़न-संदूक को छुआ; और उठानेवाले ठहर गए, तब उसने कहा, “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!” \v 15 तब वह मुर्दा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उसने उसे उसकी माँ को सौंप दिया।