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\v 20 \v 21 \v 22 और यदि वे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के ज्ञान के द्वारा संसार की नाना प्रकार की अशुद्धता से बच निकले, और फिर से उनमें फँसकर हार गए, तो उनके अंत की दशा पहली से भी बुरी हो गई है। 21 क्योंकि धार्मिकता के मार्ग का न जानना ही उनके लिये भला होता, बजाय इसके कि वे उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई थी। 22 उन पर यह कहावत ठीक बैठती है कि: “कुत्ता अपनी छाँट की ओर लौटता है।” और “नहलाई हुई सूअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है।” (नीति. 26:11)
\v 20 और यदि वे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के ज्ञान के द्वारा संसार की नाना प्रकार की अशुद्धता से बच निकले, और फिर से उनमें फँसकर हार गए, तो उनके अंत की दशा पहली से भी बुरी हो गई है। \v 21 क्योंकि धार्मिकता के मार्ग का न जानना ही उनके लिये भला होता, बजाय इसके कि वे उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई थी। \v 22 उन पर यह कहावत ठीक बैठती है कि: “कुत्ता अपनी छाँट की ओर लौटता है।” और “नहलाई हुई सूअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है।” (नीति. 26:11)

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"02-12",
"02-15",
"02-17"
"02-17",
"02-20"
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