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\v 7 प्रिय बालकों, किसी के भरमाने में न आना; जो धार्मिकता का काम करता है, वही उसके समान धर्मी है। \v 8 जो कोई पाप करता है, वह शैतान की ओर से है, क्योंकि
\v 7 प्रिय बालकों, किसी के भरमाने में न आना; जो धार्मिकता का काम करता है, वही उसके समान धर्मी है। \v 8 जो कोई पाप करता है, वह शैतान की ओर से है, क्योंकि शैतान आरम्भ ही से पाप करता आया है। परमेश्‍वर का पुत्र इसलिए प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे।

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\v 9 जो कोई परमेश्‍वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका बीज* उसमें बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता, क्योंकि वह परमेश्‍वर से जन्मा है। \p \v 10 इसी से परमेश्‍वर की सन्तान, और शैतान की सन्तान जाने जाते हैं; जो कोई धार्मिकता नहीं करता, वह परमेश्‍वर से नहीं, और न वह जो अपने भाई से प्रेम नहीं रखता।
\v 9 जो कोई परमेश्‍वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका बीज* उसमें बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता, क्योंकि वह परमेश्‍वर से जन्मा है। \v 10 इसी से परमेश्‍वर की सन्तान, और शैतान की सन्तान जाने जाते हैं; जो कोई धार्मिकता नहीं करता, वह परमेश्‍वर से नहीं, और न वह जो अपने भाई से प्रेम नहीं रखता।
परस्पर प्रेम से रहो

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\v 11 क्योंकि जो समाचार तुम ने आरम्भ से सुना, वह यह है, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें। \p \v 12 और कैन के समान न बनें, जो उस दुष्ट से था, और जिस ने अपने भाई की हत्या की। और उसकी हत्या किस कारण की? इसलिए कि उसके काम बुरे थे, और उसके भाई के काम धार्मिक थे। (भज. 38: 20)
\v 11 क्योंकि जो समाचार तुम ने आरम्भ से सुना, वह यह है, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें। \v 12 और कैन के समान न बनें, जो उस दुष्ट से था, और जिस ने अपने भाई की हत्या की। और उसकी हत्या किस कारण की? इसलिए कि उसके काम बुरे थे, और उसके भाई के काम धार्मिक थे। (भज. 38: 20)

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\v 13 हे भाइयों, यदि संसार तुम से बैर करता है तो अचम्भा न करना। \p \v 14 हम जानते हैं, कि हम मृत्यु से पार होकर जीवन में पहुँचे हैं; क्योंकि हम भाइयों से प्रेम रखते हैं जो प्रेम नहीं रखता, वह मृत्यु की दशा में रहता है। \p \v 15 जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता।
\v 13 हे भाइयों, यदि संसार तुम से बैर करता है तो अचम्भा न करना। \v 14 हम जानते हैं, कि हम मृत्यु से पार होकर जीवन में पहुँचे हैं; क्योंकि हम भाइयों से प्रेम रखते हैं जो प्रेम नहीं रखता, वह मृत्यु की दशा में रहता है। \v 15 जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता।

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\v 16 हमने प्रेम इसी से जाना, कि उसने हमारे लिए अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए। \p \v 17 पर जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को जरूरत में देखकर उस पर तरस न खाना चाहे, तो उसमें परमेश्‍वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है? (व्य. 15:7-8) \p \v 18 हे मेरे प्रिय बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।
\v 16 हमने प्रेम इसी से जाना, कि उसने हमारे लिए अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए। \v 17 पर जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को जरूरत में देखकर उस पर तरस न खाना चाहे, तो उसमें परमेश्‍वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है? (व्य. 15:7-8) \v 18 हे मेरे प्रिय बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।
परमेश्‍वर के सम्मुख साहस

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\v 19 इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उस विषय में हम उसके सामने अपने मन को आश्वस्त कर सकेंगे। \p \v 20 क्योंकि परमेश्‍वर हमारे मन से बड़ा है*; और सब कुछ जानता है। \p \v 21 हे प्रियों, यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्‍वर के सामने साहस होता है। \p \v 22 और जो कुछ हम माँगते हैं, वह हमें उससे मिलता है; क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं।
\v 19 इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उस विषय में हम उसके सामने अपने मन को आश्वस्त कर सकेंगे। \v 20 क्योंकि परमेश्‍वर हमारे मन से बड़ा है*; और सब कुछ जानता है। \v 21 हे प्रियों, यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्‍वर के सामने साहस होता है। \v 22 और जो कुछ हम माँगते हैं, वह हमें उससे मिलता है; क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं।

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\c 4 \v 1 हे प्रियों, हर एक आत्मा पर विश्वास न करो*: वरन् आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्‍वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। \p \v 2 परमेश्‍वर की आत्मा को तुम इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है वह परमेश्‍वर की ओर से है। \p \v 3 और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्‍वर की ओर से नहीं है; यही मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिसकी चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आनेवाला है और अब भी जगत में है।
\c 4 \v 1 हे प्रियों, हर एक आत्मा पर विश्वास न करो*: वरन् आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्‍वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। \v 2 परमेश्‍वर की आत्मा को तुम इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है वह परमेश्‍वर की ओर से है। \v 3 और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्‍वर की ओर से नहीं है; यही मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिसकी चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आनेवाला है और अब भी जगत में है।

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