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\v 3 जो कुछ हमने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिए कि तुम भी हमारे साथ सहभागी हो; और हमारी यह सहभागिता पिता के साथ, और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ है। \v 4 और ये बातें हम इसलिए लिखते हैं, कि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए*।
\v 3 जो कुछ हमने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिए कि तुम भी हमारे साथ सहभागी हो; और हमारी यह सहभागिता पिता के साथ, और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ है। \v 4 और ये बातें हम इसलिए लिखते हैं, कि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए*।
परमेश्‍वर के साथ सहभागिता

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\v 8 यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं। \p \v 9 यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। (भज. 32:5, नीति. 28:13) \p \v 10 यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है।
\v 8 यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं। \v 9 यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। (भज. 32:5, नीति. 28:13) \v 10 यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है।

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\c 2 \v 1 मेरे प्रिय बालकों, मैं ये बातें तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, धर्मी यीशु मसीह। \p \v 2 और वही हमारे पापों का प्रायश्चित है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन् सारे जगत के पापों का भी। \p \v 3 यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे, तो इससे हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं।
\c 2 \v 1 मेरे प्रिय बालकों, मैं ये बातें तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, धर्मी यीशु मसीह। \v 2 और वही हमारे पापों का प्रायश्चित है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन् सारे जगत के पापों का भी। \v 3 यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे, तो इससे हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं।

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\v 4 जो कोई यह कहता है, “मैं उसे जान गया हूँ,” और उसकी आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है; और उसमें सत्य नहीं। \p \v 5 पर जो कोई उसके वचन पर चले, उसमें सचमुच परमेश्‍वर का प्रेम सिद्ध हुआ है।* हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उसमें हैं। \p \v 6 जो कोई यह कहता है, कि मैं उसमें बना रहता हूँ, उसे चाहिए कि वह स्वयं भी वैसे ही चले जैसे यीशु मसीह चलता था।
\v 4 जो कोई यह कहता है, “मैं उसे जान गया हूँ,” और उसकी आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है; और उसमें सत्य नहीं। \v 5 पर जो कोई उसके वचन पर चले, उसमें सचमुच परमेश्‍वर का प्रेम सिद्ध हुआ है।* हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उसमें हैं। \v 6 जो कोई यह कहता है, कि मैं उसमें बना रहता हूँ, उसे चाहिए कि वह स्वयं भी वैसे ही चले जैसे यीशु मसीह चलता था।
सबसे प्रेम करो

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\v 7 हे प्रियों, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं लिखता, पर वही पुरानी आज्ञा जो आरम्भ से तुम्हें मिली है; यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम ने सुना है। \p \v 8 फिर भी मैं तुम्हें नई आज्ञा लिखता हूँ; और यह तो उसमें और तुम में सच्ची ठहरती है; क्योंकि अंधकार मिटता जा रहा है और सत्य की ज्योति अभी चमकने लगी है।
\v 7 हे प्रियों, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं लिखता, पर वही पुरानी आज्ञा जो आरम्भ से तुम्हें मिली है; यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम ने सुना है। \v 8 फिर भी मैं तुम्हें नई आज्ञा लिखता हूँ; और यह तो उसमें और तुम में सच्ची ठहरती है; क्योंकि अंधकार मिटता जा रहा है और सत्य की ज्योति अभी चमकने लगी है।

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\v 9 जो कोई यह कहता है, कि मैं ज्योति में हूँ; और अपने भाई से बैर रखता है, वह अब तक अंधकार ही में है। \p \v 10 जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता। \p \v 11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अंधकार में है, और अंधकार में चलता है*; और नहीं जानता, कि कहाँ जाता है, क्योंकि अंधकार ने उसकी आँखें अंधी कर दी हैं।
\v 9 जो कोई यह कहता है, कि मैं ज्योति में हूँ; और अपने भाई से बैर रखता है, वह अब तक अंधकार ही में है। \v 10 जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता। \v 11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अंधकार में है, और अंधकार में चलता है*; और नहीं जानता, कि कहाँ जाता है, क्योंकि अंधकार ने उसकी आँखें अंधी कर दी हैं।
पत्री लिखने का कारण

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\v 12 हे बालकों, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि उसके नाम से तुम्हारे पाप क्षमा हुए। (भज. 25:11) \p \v 13 हे पिताओं, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि जो आदि से है, तुम उसे जानते हो हे जवानों, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है: हे लड़कों, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि तुम पिता को जान गए हो। \p \v 14 हे पिताओं, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि जो आदि से है तुम उसे जान गए हो हे जवानों, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि बलवन्त हो, और परमेश्‍वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है।
\v 12 हे बालकों, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि उसके नाम से तुम्हारे पाप क्षमा हुए। (भज. 25:11) \v 13 हे पिताओं, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि जो आदि से है, तुम उसे जानते हो हे जवानों, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है: हे लड़कों, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि तुम पिता को जान गए हो। \v 14 हे पिताओं, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि जो आदि से है तुम उसे जान गए हो हे जवानों, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि बलवन्त हो, और परमेश्‍वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है।
संसार के विषय में चेतावनी

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