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\v 21 आंख हाथे से नहीं कह सकत की,हमय तोहर जरूरत नाही .अउर न मुड़ गोडे से कही सकत की हमय तोहर जरूरत नाही| \v 22 लकिन देहि कय अंग जवन सबसे कम जोर देखय परा थे वे बहुत जरुरी हुआ थे \v 23 अउरदेहि के जवने अंग का हम अच्छा समझी थय वन्ही का जादा आदर देई थय अउर हमार सोभाहिन् अंग बहुत सोभयमान होयजात है | \v 24 येही से हमहन के शोभायमान अंगो क इस का प्रयोजन नाहीं, लकीन परमेश्‍वर ने देह को अइसन बना दिहीन बाय , कि जाऊन अंग को कमी रहा ओहि क आउर भी बहुत आदर होय ।