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\v 32 यही से हम चाही थय की तुहय चिन्ता नहोय | बिना वियाह कय मनाई चिन्ता करा थय की प्रभु का कैसे खुश करी | \v 33 लकिन व्याहा मनाई चिन्ता करा थय की अपने मेहरारू का कैसे खुश करी | \v 34 व्याहा अउर बिन व्याहा दुइनव म भेद बाय :बिन् व्याहा सोचाथय की अपने देहि अउर आत्मा दुइनव म पवित्र रही, लकिन व्यही औरत संसार के चिन्ता म रहा थय की अपने आदमी का कैसे खुश करय |