From 883fa1d7a9083d024053b91b5ddafe8248238ca7 Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: UGM Date: Fri, 21 Jul 2017 11:26:15 +0530 Subject: [PATCH] Fri Jul 21 2017 11:26:15 GMT+0530 (India Standard Time) --- 07/01.txt | 2 +- 07/03.txt | 2 +- 07/05.txt | 2 +- 07/08.txt | 2 +- 07/10.txt | 2 +- 07/12.txt | 2 +- 6 files changed, 6 insertions(+), 6 deletions(-) diff --git a/07/01.txt b/07/01.txt index a6288ec..d9e59fe 100644 --- a/07/01.txt +++ b/07/01.txt @@ -1 +1 @@ -\c 7 \v 1 \v 2 1 उ सब बात के बारे म जवन तू लिखे हयो ,ई अच्छा बाय,की मर्द मेहरारू का न छुअए | 2 लकिन व्यभिचार के डर के मारे हर मर्द कय मेहरारू ,अउर हर ऐक मेहरारू के मन्सेधु हुवय | \ No newline at end of file +\c 7 \v 1 1 उ सब बात के बारे म जवन तू लिखे हयो ,ई अच्छा बाय,की मर्द मेहरारू का न छुअए | 2 \v 2 लकिन व्यभिचार के डर के मारे हर मर्द कय मेहरारू ,अउर हर ऐक मेहरारू के मन्सेधु हुवय | \ No newline at end of file diff --git a/07/03.txt b/07/03.txt index 086c1ba..835c71d 100644 --- a/07/03.txt +++ b/07/03.txt @@ -1 +1 @@ -\v 3 \v 4 3 मर्द अपने मेहरारू कय हक़ पूरा करय,वैसय मेहरारू अपने मर्द कय हक़ पूरा करय | 4 मेहरारू का अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मर्द कय बाय, वैसय मर्द कय अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मेहरारू कय बाय | \ No newline at end of file +\v 3 3 मर्द अपने मेहरारू कय हक़ पूरा करय,वैसय मेहरारू अपने मर्द कय हक़ पूरा करय | 4 \v 4 मेहरारू का अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मर्द कय बाय, वैसय मर्द कय अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मेहरारू कय बाय | \ No newline at end of file diff --git a/07/05.txt b/07/05.txt index d0ff3b1..7381a86 100644 --- a/07/05.txt +++ b/07/05.txt @@ -1 +1 @@ -\v 5 \v 6 \v 7 5 तू ऐक दुसरे से अलग न रहव,सिरिफ प्रार्थना की ताय वुहव सम्मत से फिर ऐक होई जाव कंहू यस न होय की सैतान मौका पाय कय परखय | 6 लकिन हम जवन कही थान उ अनुमति हुए आज्ञा नाही | 7 हम चाही थय की जयसैय हम हान वईसय सब होई जाय;लकिन हर ऐक विशेस विशेस वरदान मिला बाय ;केहू का कैसे तव केहू का कैसे | \ No newline at end of file +\v 5 5 तू ऐक दुसरे से अलग न रहव,सिरिफ प्रार्थना की ताय वुहव सम्मत से फिर ऐक होई जाव कंहू यस न होय की सैतान मौका पाय कय परखय | 6 \v 6 लकिन हम जवन कही थान उ अनुमति हुए आज्ञा नाही | 7 \v 7 हम चाही थय की जयसैय हम हान वईसय सब होई जाय;लकिन हर ऐक विशेस विशेस वरदान मिला बाय ;केहू का कैसे तव केहू का कैसे | \ No newline at end of file diff --git a/07/08.txt b/07/08.txt index 1f596fe..4182f19 100644 --- a/07/08.txt +++ b/07/08.txt @@ -1 +1 @@ -\v 8 \v 9 8 लकिन हम उनकी ताय जवन अविबाहित अउर विधवा हए वे ऐसे रहंय जेस हम हांन | 9 लकिन अगर वे संयम न कय सकय तव वियाह कय लिए,कहे से वियाह करब कामुकता करय से अच्छा बाय | \ No newline at end of file +\v 8 8 लकिन हम उनकी ताय जवन अविबाहित अउर विधवा हए वे ऐसे रहंय जेस हम हांन | 9 \v 9 लकिन अगर वे संयम न कय सकय तव वियाह कय लिए,कहे से वियाह करब कामुकता करय से अच्छा बाय | \ No newline at end of file diff --git a/07/10.txt b/07/10.txt index 10240a3..f9902ab 100644 --- a/07/10.txt +++ b/07/10.txt @@ -1 +1 @@ -\v 10 \v 11 10 जेकय वियाह भवा बाय, वका नाही,लकिन प्रभु आज्ञा देयत थय की मेहरारू अपने मर्द से अलग न रहंय | 11 (अउर अगर अलगव होई जाय तव,बिना दुसर वियाह न करय; या तव अपने मर्द इ मिलाप कय लियय) अउर मर्द अपने मेहरारू का न छोड़य | \ No newline at end of file +\v 10 10 जेकय वियाह भवा बाय, वका नाही,लकिन प्रभु आज्ञा देयत थय की मेहरारू अपने मर्द से अलग न रहंय | 11 \v 11 (अउर अगर अलगव होई जाय तव,बिना दुसर वियाह न करय; या तव अपने मर्द इ मिलाप कय लियय) अउर मर्द अपने मेहरारू का न छोड़य | \ No newline at end of file diff --git a/07/12.txt b/07/12.txt index 5dcc55a..8cd8416 100644 --- a/07/12.txt +++ b/07/12.txt @@ -1 +1 @@ -\v 12 \v 13 \v 14 12 दुसरे से प्रभु नाही,हमहींन कहित हान की अगर केहू कय मेहरारू विश्वास न करत होय और अउर वकरे साथे खुश होयतव वह्का न छोड़य | 13 अउर जेकय मर्द विश्वास न करत होय खुश होय तव अपने मर्द का न छोड़य | 14 काहेसे यस मर्द जे विश्वास न रक्खत होय उ मेहरारू के कारण पवित्र होथय,यस मेहरारू जे विश्वास न रक्खत हो उ मर्द के कारण पवित्र होथय; नाही तव लड्कवाले अशुध्द होते ,अब तव पवित्र हए | \ No newline at end of file +\v 12 12 दुसरे से प्रभु नाही,हमहींन कहित हान की अगर केहू कय मेहरारू विश्वास न करत होय और अउर वकरे साथे खुश होयतव वह्का न छोड़य | 13 \v 13 अउर जेकय मर्द विश्वास न करत होय खुश होय तव अपने मर्द का न छोड़य | \v 14 14 काहेसे यस मर्द जे विश्वास न रक्खत होय उ मेहरारू के कारण पवित्र होथय,यस मेहरारू जे विश्वास न रक्खत हो उ मर्द के कारण पवित्र होथय; नाही तव लड्कवाले अशुध्द होते ,अब तव पवित्र हए | \ No newline at end of file